राम कृष्णपरमहंस का परिचय एवं मूल्य
शुरुआती जीवन - मानवीय मूल्यों के पोषक संत रामकृष्ण परमहंस का जन्म 28 फ़रवरी 1836 को बंगाल प्रांत स्थित कामारपुकुर ग्राम में हुआ था। इनके बचपन का नाम गदाधर था। पिताजी के नाम खुदीराम और माताजी के नाम चन्द्रा देवी था ।राम कृष्ण के माता पिता को इनके जन्म से पूर्व इनमे कुछ अलौकिक होने का अनुभव इस प्रकार हुआ की उनके पिता ने सपने में भगवान विष्णु को अलोकिकताओं के बारे में देखा तो वही दूसरी और माता ने तरफ से बच्चे की और प्रकाश आता देखा | रामकृष्ण ने वर्ष की उम्र में खो दिया था फिर उनके के भाई रामकुमार चट्टोपाध्याय उन्हें कलकत्ता आये |
इसके बाद राकुमार दक्षिरेश्वर में पुजारी बन गए और उनकी मृत्यु के बाद राम कृष्ण वह के पुजारी बन गए फिर ध्यान में रहने लगे वह माता काली को ब्रह्म्हाण्ड की माता समझते थे और उसके ऐसे क गया हो |
राम कृष्ण जी के मूल्य - 1. रामकृष्ण छोटी कहानियों के माध्यम से लोगों को शिक्षा देते थे। कलकत्ता के बुद्धिजीवियों पर उनके विचारों ने ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा था; हांलाकि उनकी शिक्षायें आधुनिकता और राष्ट्र के आज़ादी के बारे में नहीं थी। उनके आध्यात्मिक आंदोलन ने परोक्ष रूप से देश में राष्ट्रवाद की भावना बढ़ने का काम किया, क्योंकि उनकी शिक्षा जातिवाद एवं धार्मिक पक्षपात को नकारती है।
2. रामकृष्ण छोटी कहानियों के माध्यम से लोगों को शिक्षा देते थे। कलकत्ता के बुद्धिजीवियों पर उनके विचारों ने ज़बरदस्त प्रभाव छोड़ा था; हांलाकि उनकी शिक्षायें आधुनिकता और राष्ट्र के आज़ादी के बारे में नहीं थी। उनके आध्यात्मिक आंदोलन ने परोक्ष रूप से देश में राष्ट्रवाद की भावना बढ़ने का काम किया, क्योंकि उनकी शिक्षा जातिवाद एवं धार्मिक पक्षपात को नकारती है।
3 . श्री श्री रामकृष्ण की जीवनी के अनुसार, वे तपस्या, सत्संग और स्वाध्याय आदि आध्यात्मिक साधनों पर विशेष बल देते थे। वे कहा करते थे, "यदि आत्मज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखते हो, तो पहले अहम्भाव को दूर करो। क्योंकि जब तक अहंकार दूर न होगा, अज्ञान का परदा कदापि न हटेगा। तपस्या, सत्सङ्ग, स्वाध्याय आदि साधनों से अहङ्कार दूर कर आत्म-ज्ञान प्राप्त करो, ब्रह्म को पहचानो।
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